एक कागज के सूखे नैपकिन से शुरू हुई इस महारथी की बार्सिलोना कथा हाताशा के आँसुओं से भीगे एक रुमाल में मुसमुसा गयी। किसी महारथी को ऐसे विदा नहीं किया जाता। पर महारथियों की विदाई का कोई शास्त्र भी तो नहीं होता।
एक कागज के सूखे नैपकिन से शुरू हुई इस महारथी की बार्सिलोना कथा हाताशा के आँसुओं से भीगे एक रुमाल में मुसमुसा गयी। किसी महारथी को ऐसे विदा नहीं किया जाता। पर महारथियों की विदाई का कोई शास्त्र भी तो नहीं होता।