[इस लेख का संपादित अंश 17 जुलाई 2023 को इंदौर के दैनिक ‘प्रभात किरण’ में छपा है।]
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सोपान जोशी
एक महारथी का छत्तीस साल का गला रुँधा हुआ था। तेईस ग्रैंड स्लैम जीत चुके नोवाक जोकोविच चूक गये थे। उनके लिए यह मौका था कि वे दो दर्जन ग्रैंड स्लैम जीतने वाले पहले पुरुष खिलाड़ी बन जाएँ, टेनिस के इतिहास मारगरेट कोर्ट के साथ खड़े हो जाएँ। किंतु कल शाम विंबलडन का फाइनल हारने के बाद बोलते हुए उन्होंने अपने बेटे की ओर देखा और रो पड़े। सेंटर कोर्ट पर करुणा की बारिश होने लगी।
उनके बाद वह लड़का माइक्रोफोन पर आया जो दो महीने पहले बीस बरस का हुआ है। जिसने अपना पहला ग्रैंड स्लैम पिछले साल सितंबर में जीता। जो सबसे कम उम्र में पहली वरीयता पाने वाला खिलाड़ी है। जिसने पाँच सेट के इस यादगार विंबलडन फाइनल में सोलह साल बड़े जोकोविच को मात दी थी – वही जोकोविच जिन्होंने पिछले महीने उन्हें फ्रेंच ओपन के सेमी-फाइनल में हराया था।
कार्लोस अल्काराज जीत चुके थे। किंतु माइक्रोफोन पर आने के बाद अपने अल्हड़ जवाबों से उन्होंने बहुत कुछ और भी जीत लिया। जिस सहजता से उन्होंने अपना खिताब उठाया, जिस टूटी-फूटी अंग्रेजी में सवालों का जवाब दिया, उसका असर अनोखा था। स्पेन के राजा दर्शक दीर्घा में मौजूद थे, अपने देश के इस होनहार को निहारने के लिए। अल्काराज ने अपने राजा की ओर देख जिस तरह बात की, उसमें इस ऐतिहासिक मौके का बोझ लेशमात्र नहीं था।
कोर्ट में एक शीतल लहर फैल गयी। दर्शक हँसे! जोकोविच नाम का घना बादल हट गया, जिसने पिछले बारह साल से टेनिस की दुनिया को अपनी प्रचंड गहनता से ढँका हुआ था। इस साल के पुरुषों के विंबलडन फाइनल का नतीजा केवल टेनिस के नये राजकुमार की ताजपोशी नहीं थी। खेल के रसिकों ने राहत की साँस ली है, कि कुछ ऐसा है जो उन्हें कई साल बाँधे रखेगा।
जिस तरह सन् 2011 के यू.एस. ओपन सेमी-फाइनल में मैच लगभग जीत चुके रॉजर फेडरर को जोकोविच ने हराया, फिर टेनिस की दुनिया पर अपना अश्वमेध का घोड़ा दौड़ाया, उससे टेनिस की दुनिया नीरस हो रही थी। जोकोविच दिमाग से खेलते हैं। हर मुकाबले को वे एक व्यक्तिगत युद्ध बना देते हैं, जिसमें हर शॉट जीवन-मरण का प्रश्न होता है।अपने प्रतियोगी का मानस वे एक-एक शॉट से छिन्न-भिन्न करते जाते हैं। अंत में वही पता लगता है जो पहले से पता है – कि टेनिस में ऐसी फौलादी मानसिकता किसी दूसरे की नहीं है। जोकोविच महारथी हैं, सही में!
परेशानी यह है कि टेनिस कोई स्थूल युद्ध नहीं है, जिसमें हार-जीत के अलावा कुछ हो ही नहीं! यह एक खेल है, इसे मनोरंजन के लिए खेला जाता है, रस के लिए देखा जाता है। इसमें नफासत और कोमलता और सौंदर्य की भी जरूरत होती है, केवल सामने वाले को दचेड़ देने के संकल्प की नहीं! फेडरर के उतार और राफा नडाल के बार-बार घायल होने की वजह से टेनिस की दुनिया फीकी लगने लगी थी। जोकोविच के चुस्त और तराशे हुए शरीर का कमाल संतुलन उनके मजबूत दिमाग और एकाग्रता के साथ मिल के टेनिस की दुनिया का बुलडोजर बन गया था। रविवार की शाम अल्काराज ने टेनिस के साँड़ को अपनी प्रतिभा की रस्सी से बाँधा, फिर अपने यौवन और बेफिक्री से टेनिस की दुनिया को आश्वस्त किया। फेडरर जैसा लुभावना और रचनात्मक खेल चाहने वाले टेनिस रसिकों के सीने पर जो पत्थर बारह साल से पड़ा था, उसे कल शाम एक ताजी हवा ने हटा दिया! जी हाँ, भविष्य उम्मीदों से भरा है!
और क्या कमाल भरा है! जिन्होंने अल्काराज को पहले खेलते देखा है, उन्हें उसकी प्रतिभा का अनुमान है। आखिर उन्हें पहली वरीयता मिली है। किंतु चर्चा थी उनकी ताकत की, उनके हथौड़े जैसे फोरहैंड की, जिसकी वजह से उन्हें अगला राफा नडाल कहा जा रहा था।
इस विंबलडन में उन्होंने यह साफ कर दिया कि वे एकदम नयी चीज हैं। घास के कम उछाल वाले कोर्ट पर उन्होंने जिस साहस से एक-के-बाद-एक ड्रॉप शॉट खेले हैं, जिस गुस्ताखी से जोकोविच जैसे महारथियों के ऊपर से गेंद को लॉब किया है, जिस सूई पिरोने के भाव से पासिंग शॉट दागे हैं, उसके बाद उन्हें कोई भी नौसिखिया नहीं कहेगा। वे केवल हार्ड-कोर्ट के खिलाड़ी नहीं हैं, न ही मिट्टी के माधो हैं जो केवल फ्रेंच ओपन के धीमे अखाड़े में उतरें। वे असीम संभावना वाले नटराज हैं, जिन्हें देखने वालों पर रस की बौछार होती है।
उनके खेल में उल्लास का भाव है, सहज प्रतिभा का आनंद है। वे गुंजाइश से बहुत आगे जाते हैं, नयी तरह की गलतियाँ करते हैं, कुछ ऐसा कर गुजरने की कोशिश करते हैं जो जोकोविच के सोचे-समझे मशीनी खेल से एकदम अलग है। उनके शॉट का चुनाव अभी चुस्त नहीं हुआ है। किंतु उनकी चूक में भी सृजन का आनंद है। उन्हें देखते हुए नसों में खून दौड़ने लगता है, कि न जाने वे अब किस करिश्मे को बयान कर दें – या चूक जाएँ!
टेनिस में रोमांच लौट आया है। अब जोकोविच की जीत पूर्वनिर्धारित नहीं है। अब मैच देखते हुए दिमागी मल्लयुद्ध की त्रासद गारंटी नहीं है। यह ठीक ही था कि कईयों को रुला चुके जोकोविच का गला रविवार की शाम रुँध आया। टेनिस ने ठंडी साँस भरी! याद किया कि यह खेल केवल दिमाग से नहीं, बाजुओं से खेला जाता है। अब टेनिस में हँसने-मुस्कुराने का समय आ गया है। अगली प्रतियोगिता का इंतजार करने का समय आ गया है। अल्काराज का समय आ गया है।
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वीरता-कायरता पर कोहली का एक विराट सबक
नोवाकः एक जोकर जो छोड़े अवाक्
आपने जो लिखा, हिन्दी खेल पत्रकारिता के लिए भी वह नई बयार है।
Indeed a fresh wave of writing. God bless you. Future beckons you.
Apartim Mukherjee, a veteran Foreign Affairs correspondent has praised the write up. Shantiveer Kaul a literary personality, to whom I had forwarded the link, has endorsed the write up.
बहुत सुंदर और सटीक विश्लेषण, सोपान जी