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(यह लेख 11 अगस्त 2021 को इंदौर के दैनिक ‘प्रभात किरण‘ के संपादकीय पन्ने पर छपा था।)
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~ सोपान जोशी
फ्रांस और स्पेन की सीमा पर 80,000 से कम आबादी का एक नगर है ऐंडोरा। यह एक स्वायत्त राष्ट्र है, दुनिया का 11वाँ सबसे छोटा देश! यहाँ के एक बैंक की तिजोरी में एक कागज़ का रुमाल रखा है, एक ‘टिश्यू पेपर नैपकिन’। कई नामी और गुमनाम अरबपतियों ने इस कागज के टुकड़े को खरीदने की फरमाइश की है, लाखों-करोड़ों में। इस लॉकर के मालिक होरेशियो गैगियोली को असीम धन और प्रलोभन दिये गये हैं कि वे इस कागज के टुकड़े को बेच दें। उन्होंने सभी को मना किया है।
इस नैपकिन पर 14 दिसंबर 2000 की तारीख लिखी हुई है। उस दिन स्पेन के बार्सिलोना नगर में गैगियोली ने सुबह टेनिस खेला था, चार्ली रेक्सैच के साथ, एक भूतपूर्व खिलाड़ी जो बार्सिलोना फुटबॉल क्लब के तकनीकी निदेशक थे। टेनिस खेलने के बाद दोनों लोग क्लब की कैंटीन में भोजन करने बैठे, जहाँ गैगियोली के एक सहयोगी भी आ गये जो उनके साथ फुटबॉल खिलाड़ियों के एजेंट का काम करते थे। दोनों एजेंट रेक्सैच से आग्रह कर रहे थे कि वे 13 साल के एक बालक को बार्सिलोना की फुटबॉल अकादमी में दाखिल कर लें।
तीन महीने पहले, सितंबर में, वह लड़का 10,500 किलोमीटर की दूरी तय कर के आर्जेंटीना के रोसारियो नगर से बार्सिलोना आया था। गैगियोली और उनके आर्जेंटीना के दो मित्रों का दावा था कि उस बालक की फुटबॉल की प्रतिभा अभूतपूर्व है। जब रेक्सैच ने उस लड़के की योग्यता परख ली, तब वह वापस आर्जेंटीना चला गया था। उस बालक ने उन्हें प्रभावित किया था, वे उसे अपनी अकादमी में लेना चाहते थे। लेकिन उस समय इतनी कम उम्र के विदेशी बच्चों को क्लब में लेने का चलन नहीं था। क्लब के सभी निदेशक इसके खिलाफ थे। यही नहीं, तीन साल पहले यह पता चला था कि उस लड़के को एक गंभीर रोग है, जिसकी वजह से उसका शरीर अपनी आयु की तुलना में छोटा था। इस रोग के उपचार का जिम्मा भी क्लब को ही उठाना था।
दोनों एजेंट मिल के रेक्सैच पर घोर दबाव डालने लगे। एजेंट का काम दलाली का होता है, पर यहाँ तो दोनों अपनी फीस के लालच के अलावा किसी बड़ी बात की दुहाई दे रहे थे। आखिर में उन्होंने चेतावनी दी कि अगर बार्सिलोना ने उस बालक को लेने का करार तुरंत नहीं किया, तो वे उसे किसी प्रतिद्वंती क्लब के पास ले जाएँगे। रेक्सैच ने जोखिम उठाया। हाथों-हाथ एक निर्णय लिया, बिना किसी दूसरे अधिकारी से बात किये। उन्होंने मेज पर रखा हुआ एक नैपकिन लिया और उस पर एक अनुबंध लिख दिया।
इसमें उन्होंने कहा कि वे अपनी जिम्मेदारी पर लायनेल मेसी नामक उस बालक को बार्सिलोना फुटबॉल क्लब के लिए स्वीकार कर रहे हैं। इस पर दोनों एजेंट ने अपने दस्तखत भी किए। कुछ समय बाद कानूनन करार हो गया। दो महीने बाद 13 साल का संकोची बालक मेसी अपने परिवार के साथ बार्सिलोना आ गया। खेल-कूद के कुल इतिहास में इससे महत्वपूर्ण अनुबंध शायद ही कोई हुआ हो। गैगियोली उस नैपकिन को किसी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
बार्सिलोना की अकादमी में लायनल मेसी के नन्हे आकार और अंतर्मुखी स्वभाव के बावजूद उसके सहपाठी उस पर जान छिड़कते थे। मैच के दौरान अगर कोई प्रतिद्वंती उसके साथ बलात् अड़ंगीबाजी करता, तो उसके सहयोगी उस खिलाड़ी की मुश्किल कर देते। हर कोई उस बालक की नैसर्गिक प्रतिभा से मोहित हो जाता। जब 16 साल की उम्र में बार्सिलोना की मुख्य टीम के लिए वह पहली बार उतरा, उसी दिन दुनिया हर देखने वाले को लगा कि कुछ ऐसी चीज सामने आयी है जो पहले कभी दिखी नहीं है।
उस समय दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे ब्राजील के रोनाल्डीन्यो, जो बार्सिलोना के लिए ही खेलते थे। यूरोप के हर क्लब में ब्राजील और आर्जेंटीना के खिलाड़ियों की भरमार रहती है। दोनों दक्षिण अमेरिकी देशों की होड़ हर क्लब तक जाती है, यहाँ तक कि एक देश के खिलाड़ी जिस मेज पर खाना खाते हैं उस पर दूसरे देश के खिलाड़ी बैठते तक नहीं हैं। लेकिन आर्जेंटीना के इस करिश्मे के लिए रोनाल्डीन्यो के मन में ऐसा प्यार ऐसा था कि ब्राजील मेज पर मेसी का हमेशा स्वागत होता था।
यही नहीं, बार्सिलोना के कड़े प्रतियोगियों के मैदानों पर उनके समर्थकों ने खड़े हो-हो के मेसी का इस्तेकबाल किया है, जैसा फुटबॉल के चरमपंथी प्रशंसकों में शायद ही कभी होता हो। खेल जीतने-जिताने वाले दमदार खिलाड़ी तो कई होते हैं। मेसी ऐसे खिलाड़ी बन के उभरे जिनका करिश्मा सामने वाले का दिल भी जीत लेता था। पिछले 13 साल से मेसी की तुलना दुनिया के सभी बड़े फुटबॉलरों से हो चुकी है। हर तुलना का जवाब एक ही होता हैः जीतने वाले तो करिश्माई खिलाड़ी तो और भी हुए हैं, लेकिन सभी को विस्मय से निरस्त्र करने वाली ऐसी प्रतिभा कोई दूसरी नहीं है।
रेक्सैच ने उस नैपकिन पर जो करार किया था उसका नतीजा यह हुआ है कि पिछले 15 सालों में बार्सिलोना को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ क्लब माना गया। यह भी कहा गया कि उसकी 2008-15 की टीम आज तक की श्रेष्ठ दो या तीन क्लब टीम मे शुमार है। इसमें मेसी के अलावा कई लोगों का योगदान है। लेकिन वे खिलाड़ी भी मेसी के सामने नतमस्तक रहते हैं। जो कोई मेसी के साथ खेला है, वह यही कहता है कि इस बेमिसाल खिलाड़ी का वर्णन नहीं किया जा सकता, उसे बस देखा जा सकता है, उसका आनंद लिया जा सकता है, और प्रारब्ध का आभार जताया जा सकता है कि ऐसी चीज हाड़-माँस में देखने को मिली।
खेल-कूद की लोकप्रियता की वजह से उसमें धन और सत्ता का दखल अत्यधिक रहता है। पिछले चार साल में बार्सिलोना को चलाने वालों ने इतनी तरह की अनीति की है कि उसका चमकता सितारा दीवालिया होने के कगार तक आ गया है। रही-सही कसर महामारी ने पूरी कर दी है। पिछले साल मेसी क्लब छोड़ने का मन बना बैठे थे, जब उन्हें मना कर बार्सिलोना में ही रख लिया गया। इस साल वे अपना घर छोड़ के कहीं जाने के मन में नहीं थे। पर आज वही क्लब उनकी तनख्वाह का आधा हिस्सा देने में भी समर्थ नहीं है, जबकि 34 की उम्र में भी वे विश्व के सबसे बढ़िया खिलाड़ियों में शुमार हैं।
रविवार को मेसी ने यह घोषणा की कि बार्सिलोना ने उन्हें नया अनुबंध देने से मना कर दिया है। अंतर्मुखी मेसी कुछ बोलने की बजाय बहुत देर तक रोते रहे, सभा में मौजूद लोग तालियों की गड़गड़ाहट से उनकी चुप्पी को भरते रहे। उनकी पत्नी ने उन्हें एक रुमाल पकड़ाया, जिससे आँखे पोछने के लिए। एक कागज के सूखे नैपकिन से शुरू हुई इस महारथी की बार्सिलोना कथा हाताशा के आँसुओं से भीगे एक रुमाल में मुसमुसा गयी। किसी महारथी को ऐसे विदा नहीं किया जाता। पर महारथियों की विदाई का कोई शास्त्र भी तो नहीं होता।
मेसी का जौहर देखने के लिए अभी दो-तीन साल तो बचे हैं। देखते रहिए कि वे कहाँ जाते हैं। फिर अपने पोते-पोतियों को बताइगा कि खिलाड़ी ऐसा भी होता है!
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